धान खरीदी केन्द्रों में भ्रष्टाचार चरम पर, छर्राटांगर मे किसान से प्रत्येक तौल में 600 से 800 ग्राम से ज्यादा लिया जा रहा है धान
हिमालय मुख़र्जी ब्यूरो चीफ रायगढ
रायगढ़ छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। यहां के किसान फसलो की अपेक्षाकृत धान पर अधिक आश्रित हैं।इसलिए धान कि खेती में वे अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं। लगातार चार महीनों तक अपने खुन पसीना सींचकर फसल तैयार करने के बाद उन्हें जो खुशी होती है उसे सिर्फ एक किसान ही महसूस कर सकता है। उसकी सारी उम्मीदें धान पर ही टिकी होती है। इसलिए जिस दिन से वह फसल काटना शुरू करता है।
उसी दिन से अपने सपनों को मूर्त रूप देने को सोचने लगता है। वह उसी दिन से इंतजार करने लगता है कि धान खरीदी की तिथि की घोषणा कब होगी और खरीदी का समय आते ही किसानों की आंखे खिल उठती हैं। मानो संजीवनी को पानी मिल गया हो। उनका मन उल्लास से भर उठता है। वहीं दूसरी ओर किसानो के धान खरीदी से जुड़े गिद्ध दृष्टि वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के मन भी फुलझडियां फ़ूटने लगती हैं मन में भ्रष्टचार की फसलें लहलहने लगातीं हैं। और ये निष्ठुर, किसान की खून पसीने की कमाई की चोरी करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते।
छर्राटांगर धान खरीदी केंद्र में किसानो के हक पर डाका
किसानो से मिली जानकारी के अनुसार आदिम जाति सेवा सहकारी समिति छर्रा टांगर धान खरीदी केंद्र में प्रत्येक तौल में 600 से 800 ग्राम धान किसानो से अधिक लेने की सूचना पर जब आज जानकारी लेने हमारी टीम धान खरीदी केंद्र छर्राटांगर पहुंची तो हमालो दवारा धान का तौल किया जा रहा था। हमने तौल हो चुके कुछ धान की बोरियो को फिर तौल कराया जिसमे सभी बोरियो मे 600 ग्राम से 800 ग्राम.तक धान अधिक पाया गया।
किसानों से प्रत्येक तोल पर अधिक धान लेते पाये जाने पर हमारी टीम के दवारा समिति प्रबंधक लक्ष्मीप्रसाद साव को पूछने पर फड़ प्रभारी सुरेन्द्र साहू ने कहा की प्रबंधक तो नहीं है। क्या बात है बताओ फिर हमारी टीम ने फड़ प्रभारी को किसानो से अधिक धान लेने के के विषय मे पूछने पर गोल मोल जवाब देते हुये कहा सुखत और सार्टेज की वजह से किसानो से प्रत्येक तौल पर अधिक धान लेना स्वीकार किया जो की नियम विपरीत है।
तथा फड़ प्रभारी सुरेन्द्र साहू द्वारा कुछ रसूखदार लोगो के नाम गिनाते हुए उक्त मामले की खबर प्रकाशन व शिकायत ना करने ले देकर मामले को रफा-दफा करने तक को कहने से भी नहीं चूके। किसानों से खरीदी किए गए धान के बोरियों को अगर उच्चअधिकारी सूक्ष्मता से जांच की जाए तो प्रत्येक तौल पीछे अधिक धान लिए जाने के मामले में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा ।
अगर प्रत्येक तौल पर 600 से 800 ग्राम अधिक तो पुरे फड़ मे कितना भ्रस्टाचार,,,
वर्तमान में छर्राटांगर धान खरीदी केंद्र में कुल किसानों के रकबा पंजीयन के औसत हिसाब से 35000 क्विंटल धान खरीदी होनी है। जिसमें से लगभग 21000 कुंटल धान खरीदी हो चुकी है। इस हिसाब से अगर देखें तो 21000 कुंटल धान खरीदी प्रत्येक बोरी 40 किलो की और प्रत्येक बोरों में औसतन 600 ग्राम धान भी अगर अधिक लिया जाता है।
तो मान लिजिये 20000÷40= 5000 बारदानों की तौल की होगी एवं प्रत्येक बारदानों में 600 ग्राम के हिसाब से 5000×600=3000000 ग्राम होगा। 3000000÷1000= 3000 किलो 30 क्विंटल होगा चुकी किसानो को सरकार प्रत्येक कंटल का 1885 रुपए देती है। उस हिसाब से 1885×30=56550 रुपए होता है। यह तो सिर्फ एक अनुमानित आंकड़ा है । जबकि धान खरीदी 14000 कुंटल अभी भी बाकी है।
जानिए किस तरह से धान खरीदी केन्द्रो मे भ्रष्टाचार को देते हैं अंजाम
धान खरीदी केन्द्रों में भ्रष्टाचार की खबरें बहुत ही आम है,और इसे लोगों ने उसी तरह आम बात मान लिया है जिस तरह मलेरिया या टायफायड को। मगर इसकी पीड़ा को ग्रसित व्यक्ति तो भुगतता ही। कुछ ऐसे ही हालात किसानों के है। खरीदी केंद्र से संबंधित कर्मचारी अधिकारी कोविड-19 से भी अधिक ख़तरनाक है जो हर किसान को अपने चपेट में ले लेते हैं।
मामला ये है कि किसान जब अपना धान खरीदी केंद्र में लेकर पहुंचता है तो वहां उसके धान को सरकारी बोरे में पलटी करके तौल करना होता है। इसके लिये शासन द्वारा हमाल रखने का प्रावधान है जिसका भुगतान भी शासन द्वारा ही किया जाना होता है । लेकिन केंद्र प्रभारी किसानों या उनके आदमियों से ही पलटी करवा लेते हैं और उनका भुगतान भी नहीं करते।
खरीदी केंद्र की व्यवस्था
कई केन्द्रों में जहां हमाल रखे गए हैं वहां हमाली का भुगतान किसानों से करवाया जाता है,जो पूर्णतः नियम विरुद्ध है। वस्तुत अधिकांश किसानों को शासन की इस व्यवस्था की जानकारी ही नहीं होती। इस मद के पैसे को ऊपर से नीचे तक बंदरबांट किया जाता है।रंग ,सुतली, सुआ का पैसा भी इसी में जुड़ा हुआ है।इसके अलावा खरीदी केंद्र की व्यवस्था हेतु भी बहुत पैसा आता है। इस पैसे को भी थूक पालिस करके हज़म कर लिया जाता है।
सूखती के नाम पर भी किसानों से एक किलो से लेकर पांच किलो तक लिया जाता है,जबकि सूखती लेने का कोई प्रावधान ही नहीं है।वास्तव में हर केंद्र में नमी मापने की मशीन होती है। 17% से अधिक नमी वाला धान लेना ही नहीं है तो फिर सूखती किस बात का? सूखती के नाम पर लिया गया ये धान पूर्णतः केंद्र प्रभारी की अवैध कमाई होती है। जिसमे प्रबंधक व अन्य संचालक मंडल के सदस्य भी हिस्सेदार होते है। तथा धान की क्वालिटी ( गुणवत्ता ) को खराब बताकर भी किसानों से पैसा लिया जाता है।
पैसा नहीं देने पर उस किसान का धान नहीं लिया जाता और पैसा देने पर वहीं धान गुणवत्तायुक्त हो जाता है। किसान डर के मारे पैसा देने को मजबूत हो जाता कि कहीं सामने वाला उसका धान रिजेक्ट ना कर दे। इस तरह कई हथकंडे और नियमों का हवाला देकर किसानों के खून पसीने की कमाई पर डाका डाला जाता है ।
न मास्क ,न सोसल डिस्टेंसिंग,कोविड-19 के निर्देशो को ठेंगा,,,
पूरी दुनिया में कोविड -19 के नाम पर कोहराम मचा हुआ है।कई धान खरीदी केन्द्रों में भी मास्क लगाकर केंद्र में आने और सोसल डिस्टेंसिंग के पालन करने की सूचना लिखी गई है। मगर ये सिर्फ दिखाने के लिए है। जिले के किसी भी केंद्र में न तो किसान मास्क लगाकर आ रहे हैं और न ही सोसल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा रहा है।
उच्च अधिकारियों की मिलीभगत
धान खरीदी केंद्र के शुरू होने के लगभग दो माह पूर्व से लेकर खरीदी बंद होने के कुछ महीने बाद तक संबंधित उच्च अधिकारी लगातार केन्द्रों का दौरा कर निरीक्षण करते रहते हैं। मगर पता नहीं ये क्या जांच करते है? पता नहीं इनके कान आंख होते भी हैं या नहीं? धान खरीदी में प्रति वर्ष करोडों की हेराफेरी की खबरें विभिन्न मीडिया प्लेटफार्म पर आती हैं ।लेकिन वही घटना पुनः दोहराई जाती है। ऐसी स्तिथि में यहां एक सवाल उठता है कि क्या वास्तव में अकेले किसी प्रबंधक या केंद्र प्रभारी की इतनी हिम्मत हो सकती है कि वह अपने स्तर से इतनी बड़ी हेराफेरी कर सके। एक नासमझ भी इसका जवाब वहीं देगा को कोई समझदार व्यक्ति देगा।
हर रोज अधिकारी आते-जाते रहते हैं तथा शासन द्वारा कृषि विस्तार अधिकारियों को नोडल अधिकारी बनाकर खरीदी केंद्रों पर ड्यूटी लगाई गई है मगर फिर भी इतनी बड़ी हिमाकत कोई केंद्र प्रभारी कैसे करता है? सब कुछ आइने की तरह साफ है। इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है कि मजबूर किसानों की अज्ञानता का लाभ उठाकर भ्रस्टाचार में उच्च अधिकारी भी शामिल हैं। ये अधिकारी बहरे , गूंगे और अंधे बनकर आखिर कब तक मेहनतकश किसानों का हक पर डाका मारते रहेंगे ?